Skip to main content

गोमूत्र में सोने की खोज दिलचस्प तो है

गुजराती भाइयों ने एक बार फिर से कमाल किया है. जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने गिर प्रजाति की 400 गायों के मूत्र की जांच के आधार पर उसमें सोना होने का दावा किया है. आयोनिक रूप में मिलने वाला यह ‘गोल्ड सॉल्ट’ पानी में घुलनशील है. इन वैज्ञानिकों ने भेड़, ऊंट और भैंस के पेशाब की भी जांच की. अफ़सोस वहां कुछ न मिला. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक इस प्रयोग के मुख्य वैज्ञानिक डॉ बालू गोलकिया को गाय के मूत्र में सोना मिलने की जानकारी अथर्ववेद से मिली थी. फिर क्या था वे इसे साबित करने में जुट गए और चार सालों की मेहनत के बाद गिर गाय के एक लीटर मूत्र से तीन से दस मिलीग्राम सोना निकाल ले आए.
जाहिर है यह बहुत बड़ी खोज है. अगर यह सफल हो गई तो देश की अधिकांश समस्याओं का हल निकल आएगा. हर गरीब गाय पालेगा और मूत्र इकठ्ठा करेगा. सरकार आजकल जैसे किसानों से दूध खरीदती है वैसे गोमूत्र खरीदेगी. कुछ संपन्न किसान तो अपने घर में ही सोना पैदा कर सकेंगे. गरीबों की सारी गरीबी छूमंतर हो जाएगी. ‘पीला सोना झोपड़ियों में चमकेगा. बच्चे सोने के पानी से नहाएंगे.’ बाकी बातों की कल्पना आप स्वयं कर सकते हैं.
पेशाब से सोना खोजने की परंपरा कोई आज की नहीं है. मॉडर्न हिस्ट्री में इस तरह की खोज का इतिहास कम से कम 400 साल पुराना है
इस सफल प्रयोग से कुछ लोगों को लग सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब हम अपने प्राचीन ग्रंथों में बताए गए सुपरसोनिक जेट, पुष्पक विमान, अणु बम और प्लास्टिक सर्जरी इत्यादि की खोज कर लेंगे. और इससे खालिस ‘भारतीय विज्ञान’ की दिशा में कदम बढाने में भी हमें मदद मिलने वाली है.
प्रश्न उठता है कि हम अब तक क्या कर रहे थे जो ऐसी खोज न कर सके? जबकि सारा सत्य ग्रंथों में पहले से लिखा है. इसे साबित करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय ने प्रयास क्यों न किया! विदेशियों ने भी हमारे ग्रंथों का काफी अध्ययन किया है, उन्हें भी यह न सूझा. क्यों?
हकीकत में ऐसा नहीं है. पेशाब से सोना खोजने की परंपरा कोई आज की नहीं है. मॉडर्न हिस्ट्री में इस तरह की खोज का इतिहास कम से कम 400 साल पुराना है. इस खोज से सोना मिला हो या न मिला हो, पर अन्य महत्वपूर्ण चीजें मिल चुकी हैं जिनसे मानवता का भला हुआ. मिसाल के लिए फास्फोरस! फास्फोरस की खोज पेशाब से सोना ढूंढ़ने के ऐसे ही एक प्रयोग का परिणाम थी. इस खोज से अचानक मिले फास्फोरस ने 19वीं और 20वीं सदी का नक्शा बदल दिया.
कहानी की शुरुआत कहां से हुई?
फास्फोरस की खोज का श्रेय हैम्बर्ग निवासी जर्मन कीमियागर (रसायनशास्त्री) हेन्निग ब्रांड (1630-1710) को जाता है. शुरू-शुरू में वे एक कांच-निर्माता के अर्दली थे. रसायनशास्त्र के शौक में अपनी सारी जमापूंजी उड़ाने के बाद उन्होंने एक अमीर विधवा से दूसरी शादी की और दहेज़ में मिले रुपये के ढेर से ‘फिलोस्फर स्टोन’ की खोज में लग गए. प्राचीन ग्रीक समाज से लेकर तब तक इस ‘फिलोस्फर स्टोन’ की असफल खोज जारी थी.
जर्मन वैज्ञानिक हेन्निग को लगा कि मनुष्यों की पेशाब का पीला होना दरअसल उसमें सोना होने का सबूत है. फिर क्या था. उन्होंने अपना गुप्त प्रयोग करना शुरू किया जो उस समय के कीमियागरों की रवायत थी
यह ‘फिलोस्फर स्टोन’ कमोबेश भारतीय परंपरा में वर्णित ‘पारस पत्थर’ की तरह ही था. मान्यता यह थी कि इसके संपर्क में आने पर कोई भी बेसिक धातु (जैसे जस्ता), सोना बन जायेगी और इसका पेय पीने से इंसान अमर हो जाता है. ऐसा प्राचीन ग्रीक ग्रंथों में लिखा था! पिछली कई शताब्दियों से जारी इस जादुई और रहस्यमयी ‘फिलोस्फर स्टोन’ की खोज को लेकर पागलपन हेन्निग ब्रांड के वक़्त भी चालू था.
एक दिन पेशाब करते वक़्त हेन्निग ब्रांड ने उसका पीलापन नोटिस किया. वह उनका यूरेका मोमेंट था. तब तक यह बात मान्यता प्राप्त कर रही थी कि हमारा शरीर विभिन्न धातुओं और रसायनों से बना है. हेन्निग को लगा कि मनुष्यों की पेशाब का पीला होना दरअसल उसमें सोना होने का सबूत है. फिर क्या था. उन्होंने अपना गुप्त प्रयोग करना शुरू किया जैसा कि उस समय के कीमियागरों की रवायत थी. यह ऐसा प्रयोग था जो उनकी जिंदगी बदल सकता था. नयी बीवी के पैसों से उन्होंने पेशाब खरीदना शुरू किया. यह साल 1669 की बात है.
जल्द ही उन्होंने तकरीबन 1100 लीटर पेशाब खरीद डाली. पहले उन्होंने पेशाब को काफी दिनों के लिए सड़ने को छोड़ दिया. फिर इसे प्रयोगशाला में गाढ़ा पेस्ट बनने तक उबाला. इसके बाद इस पेस्ट को बहुत उच्च ताप पर उबालते हुए इसकी भाप को पानी से गुजारा. उनका यकीन था कि इससे पानी की तली में ठोस सोना बैठता जाएगा पर हेन्निग को निराश करते हुए पानी की तली में सोने की बजाय एक सफ़ेद सा गीला तत्व एकत्रित हुआ जो अंधेरे में भी चमकता था. किसी कारणवश यह तत्व आग के संपर्क में आया तो भक्क से जल गया. उनकी प्रयोगशाला जलते-जलते बची. इस तरह अनजाने ही हेन्निग फॉस्फोरस की खोज कर चुके थे!
पेशाब पर प्रयोग करते हुए हेन्निग को सोना तो नहीं मिला लेकिन अनजाने ही उन्होंने फॉस्फोरस की खोज कर ली थी जो बाद के समय में काफी उपयोगी साबित हुआ
हेन्निग ने इसका नाम ‘फॉस्फोरस मिराबिलिस’ रखा. मतलब ‘चमत्कारिक ढंग से जलने वाली धातु’. आज हमें पता है कि हेन्निग द्वारा खोजा गया वह तत्व ‘अमोनियम सोडियम हाइड्रोजन फास्फेट’ NH4 (NaPHO4) था. तकरीबन 1100 लीटर पेशाब को उबालने के बाद उन्हें 60 ग्राम फास्फोरस मिला. हेन्निग ने शुरू में अपनी खोज को गुप्त रखा पर बाद में ड्रेस्डन के वैज्ञानिक डी काफ्ट को यह फॉर्मूला मात्र 200 थेलर (जर्मन मुद्रा) में बेच दिया. क्राफ्ट इस फार्मूले का प्रचार करते हुए इंग्लैंड सहित पूरा यूरोप घूमे. इंग्लैंड में उनकी मुलाक़ात मशहूर वैज्ञानिक रॉबर्ट बॉयल से हुई. पेशाब से फास्फोरस बनने का रहस्य जल्द ही खुल गया और स्वीडन के वैज्ञानिक ‘जोहान्न कन्च्केल’ ने 1678 में और रोबर्ट बॉयल ने अपने सहायक अम्ब्रोस गॉडफ्रे-हेंकविट्ज के साथ मिलकर सन 1680 में इसी प्रक्रिया से फॉस्फोरस बना डाला. आगे चलकर अम्ब्रोस फास्फोरस के पहले व्यापारी बने.
रॉबर्ट बॉयल ने दावा किया कि क्राफ्ट ने उन्हें सिर्फ यह बताया था कि यह ‘मानव के किसी उत्पाद’ से बना है. इतना उनके लिए बहुत बड़ा सूत्र था. उन्होंने फॉस्फोरस बनाने की पद्धति पर अपनी किताब प्रकाशित की. आगे इस प्रक्रिया में बालू का प्रयोगकर उन्होंने हेन्निग के प्रयोग में और भी सुधार किया. पर उनके भी प्रयोग में मूल तत्व मनुष्यों की पेशाब ही थी. जॉन एम्स्ले की किताब ‘द शॉकिंग हिस्टरी ऑफ फॉस्फोरस’ में इस पूरे किस्से का बहुत रोचक वर्णन मिलता है.
गाय के मूत्र में सोना और भविष्य का एजेंडा
हमारे वैज्ञानिकों ने गाय के पेशाब में सोना मिलने का दावा किया है लेकिन अगर वह न भी निकले तो भी इतना तो स्पष्ट है कि इसमें से कुछ न कुछ तो जरूर निकलेगा. अगर 400 साल पहले के वैज्ञानिकों ने इस तरह के प्रयोगों से फॉस्फोरस खोजा तो हम भी कुछ न कुछ खोज ही लेंगे.
इसके बाद हम आज के भारतीय सन्दर्भ और गोमूत्र में सोने की खोज के मेल से भविष्य की तस्वीर की कुछ कल्पना कर सकते हैं. हमने पहले से ही गाय को ‘माता’ का दर्जा दिया हुआ है. गाय की सुरक्षा के लिए हम मारकाट करने को भी तैयार रहते हैं. अब गोमूत्र में सोना होने की खोज हमारी बात को और भी मजबूत कर देती है. इसके बाद हम देश में ही नहीं विदेशों में भी गो-माता को मारे और खाये जाने पर प्रतिबंध की मांग कर सकते हैं. तब हम ताल ठोककर कह सकते हैं कि हम खुद को विश्व गुरू ऐसे ही थोड़े ना कहते हैं.

Comments

Popular posts from this blog

2025 मे तीसरे विश्व यूउद्ध के कारण धरती पर जीवन समाप्त

जागो दुनिया वालो जागो, गूंगे बहरे जीवित मुर्दो जागो घरती पर आ चुके है परमेश्वर(जगतगुरू) =============================== भविष्यवक्ताओ का कहना है अगर ये जगतगुरू तत्वदर्शी संत इस धरती पर नही आता तो 2025 तक तीसरे विश्व युद्ध के कारण पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाता... तीसरे विश्वयुद्ध को रोकने, दुनिया का इतिहास बदलने तथा इस संसार मे सतभक्ति देकर विश्व शान्ति स्थापित करने और काल से छुडवाकर पूर्ण मोक्ष देने .. सृष्टि के महानायक जगतगुरू(तत्वदर्शी संत बाखबर) चारो युगो मे प्रत्यक्ष रूप से केवल पांचवी और अन्तिम बार इस पृथ्वी पर आ चुके है.. संसार मे गुरूओ की भरमार है अप्रत्यक्ष रूप से जगतगुरू भी धरती पर आते जाते रहते है लेकिन हर युग मे जगतगुरू(तत्वदर्शी संत,बाखबर) प्रत्यक्ष रूप से एक ही बार आता है लेकिन इस पृथ्वी पर इतना पाप और अत्याचार बढ गया है ये पृथ्वी बारूद के ढेर पर रखी है इसलिए इस कलयुग मे दुबारा जगतगुरू (तत्वदर्शी संत) को प्रत्यक्ष रूप से आना पडा है भविष्यवक्ताओ का कहना है अगर ये तत्वदर्शी संत बाखबर इस धरती पर नही आते तो 2025 तक तीसरे विश्व युद्ध के कारण पृथ्वी पर जीवन स...

अविध्या क्या है

Jagatguru Rampal ji Maharaj प्र. 1: अविद्या किसे कहते हैं ? उत्तर: विपरीत जानने को अविद्या कहते हैं। प्र. 2: अविद्या का कोई उदाहरण दीजिए ? उत्तर: जड़ को चेतन मानना, ईश्वर को न मानना, अंधेरे में रस्सी को सांप समझ लेना। ये अविद्या के उदाहरण है। प्र. 3: जन्म का अर्थ क्या है ? उत्तर: शरीर को धरण करने का नाम जन्म है। प्र. 4: जन्म किसका होता है ? उत्तर: जन्म आत्मा का होता है। प्र. 5: मृत्यु किसे कहते है ? उत्तर: आत्मा के शरीर से अलग होने को मृत्यु कहते हैं। प्र. 6: जन्म क्यों होता हैं ? उत्तर: पाप-पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए जन्म होता है। प्र. 7: क्या जन्म-मृत्यु को रोका जा सकता है ? उत्तर: हाँ, जन्म-मृत्यु को रोका जा सकता है। प्र. 8: मुक्ति किसे कहते हैं ? उत्तर: जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट जाना ही मुक्ति है। प्र. 9: मुक्ति किसकी होती है ? उत्तर: मुक्ति आत्मा की होती है। प्र. 10: मुक्ति में आत्मा कहाँ रहता है ? उत्तर: मुक्ति में आत्मा ईश्वर में रहता है। प्र. 11: क्या मुक्ति में आत्मा ईश्वर में मिल जाता है ? उत्तर नहीं, मुक्ति में आत्मा ईश्वर में नहीं मिलता है। प्र. 12: मुक्ति में सुख ह...

भगवान का असितव

भगवान का अस्तित्व – Hindi Story एक बार एक व्यक्ति नाई की दुकान पर अपने बाल कटवाने गया| नाई और उस व्यक्ति के बीच में ऐसे ही बातें शुरू हो गई और वे लोग बातें करते-करते “भगवान” के विषय पर बातें करने लगे| तभी नाई ने कहा – “मैं भगवान (Bhagwan) के अस्तित्व को नहीं मानता और इसीलिए तुम मुझे नास्तिक भी कह सकते हो” “तुम ऐसा क्यों कह रहे हो”  व्यक्ति ने पूछा| नाई ने कहा –  “बाहर जब तुम सड़क पर जाओगे तो तुम समझ जाओगे कि भगवान का अस्तित्व नहीं है| अगर भगवान (Bhagwan) होते, तो क्या इतने सारे लोग भूखे मरते? क्या इतने सारे लोग बीमार होते? क्या दुनिया में इतनी हिंसा होती? क्या कष्ट या पीड़ा होती? मैं ऐसे निर्दयी ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता जो इन सब की अनुमति दे” व्यक्ति ने थोड़ा सोचा लेकिन वह वाद-विवाद नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा और नाई की बातें सुनता रहा| नाई ने अपना काम खत्म किया और वह व्यक्ति नाई को पैसे देकर दुकान से बाहर आ गया| वह जैसे ही नाई की दुकान से निकला, उसने सड़क पर एक लम्बे-घने बालों वाले एक व्यक्ति को देखा जिसकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी और ऐसा लगता था शायद उसने कई महीनो...