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पुण परमात्मा कबीर साहिब जी महाराज जी है

।।पुर्णँ परमात्माय नमः।।
  • "सत भगति और परमात्मा"
ग्रुप आप जी का तह दिल से स्वागत करता है।
जीव हमारी जाति है ,
मानव धर्मँ हमारा ।
हिन्दु,मुस्लिम,सिख,ईसाई ,
धर्मँ नहीँ कोई न्यारा ।।

सत भगति :- जो भगति सभी धर्मँ सदग्रन्थोँ व मोक्ष प्राप्त
महापुरुषोँ(नानक,दादूदास,गरीबदास,मलूकदास,घीसादास आदि) की अमृत वाणी के
अनुसार हो ।
परमात्मा:- जो सबका जनक है रचियता है जो पुर्ण ब्रह्म हैँ सत पुरुष है।

सभी धर्मोँ के सद्ग्रँन्थोँ और मोक्ष प्राप्त सन्तोँ द्वारा एक ही
परमात्मा की भगति विधिँ बताई है वो परमात्मा कौन है , जब परमात्मा एक है तो
उसे पानेँ की विधिँ भी एक ही है । हम ब्रह्मा,विष्णु,शिव और ब्रह्म व
दुर्गाँ जी की भगतिँ से कभी मोक्ष प्रप्ति नहीँ कर सकते क्योकि ये नाशवान
है ।
सत भगति और परमात्मा को जाननेँ के लिऐ पुर्णँ सन्त की खोज कर सत भगतिँ करे जो सर्वँ धर्मग्रँन्थोँ से प्रमाणित हो ।

आप जी से अनुरोध है कि ग्रुप मेँ किसी भी पोस्ट मेँ अपशब्दोँ का प्रयोग कर
कोमेँट ना करेँ यदि कोई ऐसा करता है तो उस पोस्ट कि रिपोर्ट करेँ ताकि उसे
ग्रुप से हटाया जा सकेँ ।
कबीर, जो तोको काँटा बोये,
वाँको बो तू फुल ।
तोहेँ फुल के फुल हैँ ,
वाको है त्रिशुल ।।

हमारा उदेश्य यह हैँ समस्त समाज सत भगति और परमात्मा को पहचानेँ और पुर्ण
परमात्मा की सत भगति पुर्णँ गुरु सेँ प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाऐँ ।।
आप जी परमेँश्वार के ज्ञान प्रचार केँ लिऐ ग्रुप का सहयोग करेँ आपका सहयोग हमारे लिऐ महत्वपुर्ण हैँ।
निवेँदन:- आप जी अपनेँ सभी दोस्तोँ को भी ग्रुप मेँ ऐड करे ताकि सत भगति और परमात्मा का ज्ञान प्रचार हो।।
।। धन्यवाद ।।
कबीर साहिँब जी की अमृतवाणी मेँ " सृष्टि रचना "
धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रिायदेवन की उत्पति भाई।।
ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सु निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सु ठिकाना। ब्रा विष्णु शिव भेद न जाना।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरें पार।

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